लेखांकन-एक परिचय

लेखांकन-एक परिचय

लेखांकन

सरल शब्दों में, लेखांकन का आशय वित्तीय स्वभाव के सौदों (या लेन-देनों) को क्रमबद्ध रूप में लेखाबद्ध करने, उनका वर्गीकरण करने, सारांश तैयार करने एवं उनको इस प्रकार प्रस्तुत करने से है जिससे उनका विश्लेषण (Analysis) व निर्वचन (Interpretation) हो सके।लेखांकन में सारांश का अर्थ तलपट (Trial Balance) बनाने से है और विश्लेषण व निर्वचन का आधार अन्तिम खाते (Final Accounts) होते हैं जिनके अन्तर्गत व्यापार खाता, लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा/स्थिति-विवरण या तुलन-पत्र (Balance Sheet) तैयार किए जाते हैं।

कला –

“लेखांकन सौदों एवं घटनाओं को, जो आंशिक रूप में अथवा कम-से-कम वित्तीय प्रवृत्ति के होते हैं, प्रभावपूर्ण विधि से एवं मौद्रिक रूप में लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने तथा उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।”

विज्ञान –

“लेखांकन मुख्यतः वित्तीय स्वभाव वाले व्यावसायिक व्यवहारों और घटनाओं के लिखने एवं वर्गीकरण करने का विज्ञान है और इन व्यवहारों व घटनाओं का महत्वपूर्ण सारांश बनाने, विश्लेषण करने, उनकी व्याख्या और परिणामों को उन व्यक्तियों तक सम्प्रेषित करने की कला है जिन्हें उनके आधार पर निर्णय लेने हैं।”

परिभाषाएँ

अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक एकाउंटेंट्स (AICPA) ने 1961 में लेखांकन की परिभाषा निम्न प्रकार दी थी:

“लेखांकन सौदों एवं घटनाओं को, जो आंशिक रूप में अथवा कम-से-कम वित्तीय प्रवृत्ति के होते हैं, प्रभावपूर्ण विधि से एवं मौद्रिक रूप में लिखने, वर्गीकृत करने और सारांश में व्यक्त करने तथा उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।”

इस -क्षेत्र पर पूर्ण प्रकाश डाला गया है, इसमें केवल लेखे तैयार करना ही लेखांकन का कार्य नहीं परिभाषा में लेखांकन के कार्य माना गया वरन् लेखों का श्रेणीयन, विश्लेषण एवं व्याख्या पर भी बल दिया गया है।इस परिभाषा में लेखांकन से प्राप्त होने वाले सभी लाभों की स्पष्ट झलक मिलती है।

अमेरिकन एकाउंटिंग प्रिन्सिपल्स बोर्ड (AAPB) ने लेखांकन की परिभाषा निम्न शब्दों में दी है

इस परिभाषा के अनुसार लेखांकन एक सेवा क्रियाकलाप है।इसका कार्य आर्थिक इकाइयों के सम्बन्ध में परिमाणात्मक सूचनाएँ, मुख्यत: वित्तीय प्रकृति की, जो आर्थिक निर्णयों व वैकल्पिक उपायों में से सुविचारित चयन के लिए उपयोगी हैं, प्रदान करना है।

लेखांकन-एक परिचय

लेखांकन की निम्नलिखित विशेषताएँ है :

  • लेखांकन व्यवसायिक सौदों के लिखने और वर्गीकृत करने की कला है ।
  • विश्लेषण एवं निर्वचन की सूचना उन व्यक्तियों को सम्प्रेषित की जानी चाहिए जिन्हें इनके आधार पर निष्कर्ष या परिणाम निकालने हैं या निर्णय लेने हैं।
  • यह सारांश लिखने, विश्लेषण और निर्वचन करने की कला है।
  • सौदे मुद्रा में व्यक्त किये जाते हैं।
  • ये लेन-देन पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति के होते हैं।

लेखांकन की प्रकृति एवं लेखांकन का क्षेत्र

लेखांकन की निम्नलिखित प्रकृति होती हैं-

  1. लेखांकन : एक पेशा – आधुनिक समय में लेखांकन एक पेशा का रूप धारण कर चुका है।लेखांकन का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त व्यक्ति को लेखापाल या चार्टर्ड एकाउन्टेंट कहते हैं।
  2. लेखांकन : एक बौद्धिक विकास – लेखांकन का विशिष्ट ज्ञान का स्वरूप बौद्धिक है, जिसे सैद्धान्तिक अध्ययन तथा व्यावहारिक ज्ञान के द्वारा सीखकर उसमें विशिष्टता प्राप्त की जाती है।
  3. लेखांकन : एक सामाजिक शक्ति – लेखांकन से प्राप्त सूचनाओं का प्रयोग व्यापार का स्वामी, लेनदार, विनियोक्ता, जनता तथा सरकार अपने हित में करते हैं।
  4. लेखांकन : एक नीति निर्धारक शक्ति – लेखांकन के आधार पर मूल्य निर्धारण, मूल्य-नियन्त्रण, मूल्य-नीति, व्यापार-नीति, क्रय-विक्रय नीति, विनियोग-नीति, आदि का निर्माण होता है।सरकार भी इसी के आधार पर आयात-निर्यात, औद्योगिक नीति, उत्पादन नीति आदि का निर्माण करती है।

लेखांकन के उद्देश्य

  1. व्यावसायिक लेन-देनों का नियमित एवं सुव्यवस्थित ढंग से पूर्ण लेखा करना – लेखांकन का प्रथम उद्देश्य सभी व्यावसायिक लेन-देनों को पूर्ण एवं व्यवस्थित रूप से लेखा करना है।मुज्यवस्थित ढग से लेखा करने से भूत की सम्भावना नहीं रहती है और परिणाम शुद्ध प्राप्त होता है।
  2. शुद्ध लाभ-हानि का निर्धारण करना– लेखांकन का दूसरा उद्देश्य एक निश्चित अवधि का लाभ-हानि ज्ञात करना है।लाभ हानि ज्ञात करने के लिए व्यापा।लाभ-हानि खाता (Profit and Loss Account) या आय विवरणों (Income Statement) तैयार करता है।
  3. व्यवसाय की वित्तीय स्थिति का ज्ञान करना लेखांकन का एक उद्देश्य संस्था की वित्तीय स्थिति के सम्बना में जानकारी पाप्त करना है।इस उद्देश्य को पूर्ति के लिए एक स्थिति-विवरण तैयार किया जाता है जिसमें बार्थी और पजी एवं दायित्वों (Capital and Liabilities) को दिखाया जाता है और दायों और सम्पत्तियों (Assets) को दिखाया जाता है।स्थिति विवरण को चिट्ठा भी कहा जाता है।यदि सम्पत्तियों से देयताएँ ( पूँजी एवं दायित्व) कम रहती है तो व्यापार को आर्थिक स्थिति सुदुढ़ मानी जाती है और यदि देयताएँ हो अधिक हो तो यह खराब आर्थिक स्थिति की सूचक होती है।
  4. आर्थिक निर्णयों के लिए सूचना प्रदान करना – लेखांकन का एक कार्य वित्तीय प्रकृति वाली सूचनाएं प्रदान करना है जिससे प्रयन्धकों को निर्णय लेने में सुविधा हो, साथ ही सही निर्णय लिये जा सकें।इसके लिए वैकल्पिक उपाय भी लेखांकन उपलग कराता है।
  5. व्यवसाय में हित रखने वाले पक्षों को सूचनाएँ देना – व्यवसाय में कई पक्षों के हित होते हैं, जैसे-स्वामी (Proprielor), कर्मचारी वर्ग, प्रवन्धक, लेनदार, विनियोजक (Investors), आदि।व्यवसाय में हित रखने वाले विभिन्न पक्षी को उनसे सम्बन्धित सूचनाएँ उगलब्ध कराना भी लेखांकन का एक उद्देश्य है।
  6. कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करना – लेखांकन का एक उद्देश्य विभिन्न वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी है।लेखांकन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के लिए रिटर्न दाखिल करने के लिए सबसे अच्छा आधार प्रस्तुत करता है।

लेखांकन की आवश्यकता एवं महत्व या लाभ

आज के युग में लेखांकन या लेखाकर्म (लेखाविधि) का महत्व काफी बढ़ गया है।इस शास्त्र के ज्ञान से न सिर्फ व्यापारी ही लाभान्वित होते हैं वरन् सरकार एवं अन्य पक्षों को भी लाभ पहुँचता है।लेखांकन के निम्नलिखित लाभ हैं :

  • स्मरण शक्ति के अभाव की पूर्ति – कोई भी व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों न हो, सभी बातों को स्मरण नहीं रख सकता है।व्यापार में प्रतिदिन सैकड़ों लेन-देन होते हैं, वस्तुओं का क्रय – विक्रय होता है।ये नकद और उधार दोनों हो सकते हैं।मजदूरी, वेतन, कमीशन, आदि के रूप में भुगतान होते हैं।इन सभी को याद रखना कठिन है।लेखांकन इस अभाव को दूर कर देता है।
  • व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं का ज्ञान होना – लेखांकन से व्यवसाय से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, जैसे :
  • लाभ-हानि की जानकारी होना
  • सम्पत्ति तथा दायित्व की जानकारी होना
  • कितना रुपया लेना है और कितना रुपया देना है
  • व्यवसाय की आर्थिक स्थिति कैसी है, आदि।
  • व्यापार का उचित मूल्यांकन – व्यावसायिक संस्था को बेचते या क्रय करते समय उसके सही मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।यदि संस्था में सही लेखांकन की व्यवस्था है तो उस संस्था की वित्तीय स्थिति के आधार पर व्यवसाय का उचित मूल्यांकन हो सकता है।
  • न्यायालय में प्रमाण – अन्य व्यापारियों से झगड़े होने की स्थिति में लेखांकन अभिलेखों को न्यायालय में प्रमाण (साक्ष्य) के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।न्यायालय प्रस्तुत किये लेखांकन अभिलेखों को मान्यता प्रदान करता है।
  • दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही में सहायक होना – एक व्यापारी दिवालिया तभी घोषित किया जा सकता है, जबकि उसके दायित्व उसकी सम्पत्तियों के मूल्य से अधिक हों।इसी प्रकार जब किसी व्यावसायिक संस्था की ऐसी स्थिति आ जाये, जबकि वह दायित्वों के भुगतान में असमर्थ हो जाये तो उसे दिवालिया घोषित किया जा सकता है।किसी भी न्यायालय को यह ज्ञान बहीखातों तथा लेखों से ही होता है।अतः दिवालिया घोषित कराने के लिए लेखाकर्म अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
  • कर-निर्धारण में सहायक – व्यापारियों को कई प्रकार के कर चुकाने पड़ते हैं; जैसे – आय-कर, बिक्री-कर, सम्पदा-कर, मनोरंजन-कर, उत्पादन-कर, आदि।इन करों के निर्धारण में लेखांकन से बड़ी सहायता मिलती है।यदि व्यापारी आवश्यक पुस्तकें न रखें तो सम्बन्धित अधिकारी मनमाने ढंग से कर लगा देंगे।
  • ऋण लेने में सहायक – व्यवसाय के विस्तार हेतु तथा उसके सफल संचालन के लिए समय-समय पर ऋण की आवश्यकता पड़ती है।यदि हिसाब-किताब ठीक ढंग से रखे गये हों तो व्यापार की सही आर्थिक स्थिति दर्शाई होगी तो हिसाब-किताब दिखाकर ऋणदाता को सन्तुष्ट किया जा सकता है और इस प्रकार खाता दिखाकर बैंक व अन्य वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त करने में सुविधा हो जाती है।
  • तुलनात्मक अध्ययन – विभिन्न वर्षों के लेखों की तुलना द्वारा व्यापारी बहुत-सी लाभदायक और आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है।इससे वह भविष्य में उन्नति या विस्तार की योजनाएँ बनाकर लाभ में वृद्धि कर सकता है अथवा हानियों से बचने के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है।
  • महत्वपूर्ण सूचनाओं का ज्ञान – बहीखातों की सहायता से व्यापारी उपयोगी आँकड़े इकट्ठे कर सकता है, जैसे-आय-व्यय, क्रय-विक्रय, पूँजी, देयताएँ, सम्पत्ति, ह्यस, स्टॉक, विनियोग, इत्यादि के आँकड़े।इन आँकड़ों से न सिर्फ महत्वपूर्ण सूचनाएँ मिलती हैं वरन् इनके आधार पर आवश्यक निष्कर्ष भी निकाले जा सकते हैं इन सूचनाओं के आधार पर नीतियाँ निर्धारित करने में मदद मिलती है।
  • कर्मचारियों को लाभ – वित्तीय लेखों से कर्मचारियों के वेतन, बोनस, भत्ते, आदि से सम्बन्धित समस्याओं के निर्धारण में मदद मिलती है।

लेखांकन के कार्य

लेखांकन के छः कार्य हैं :

  1. लेखात्मक कार्य
  2. व्याख्यात्मक कार्य
  3. सम्प्रेषणात्मक कार्य
  4. वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना
  5. व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना
  6. निर्णय लेने में सहायता प्रदान करना
  7. लेखात्मक कार्य – लेखांकन का यह आधारभूत कार्य है।इस कार्य के अन्तर्गत व्यवसाय की प्रारम्भिक पुस्तकों (जर्नल और उसकी सहायक बहियों) में क्रमबद्ध लेखे करना, उनको उपयुक्त खातों में वर्गीकृत करना अर्थात् उनसे खाते तैयार करना और तलपट (Trial Balance) बनाने के कार्य शामिल हैं।इनके आधार पर वित्तीय विवरणियों (Financial Statements), जैसे-लाभ-हानि खाता/आय विवरणी खाता तथा चिट्टे को तैयार किया जाता है।
  8. व्याख्यात्मक कार्य – इस कार्य के अन्तर्गत लेखांकन सूचनाओं में हित रखने वाले पक्षों के लिए वित्तीय विवरण व प्रतिवेदन (Report) का विश्लेषण एवं व्याख्या शामिल है।तृतीय पक्ष एवं प्रबन्धकों की दृष्टि से लेखांकन का यह कार्य महत्वपूर्ण माना गया है।
  9. सम्प्रेषणात्मक कार्य – लेखांकन को व्यवसाय की भाषा कहा जाता है।जिस प्रकार भाषा का मुख्य उद्देश्य सम्प्रेषण के साधन के रूप में कार्य करना है, क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति भाषा ही करती है, ठीक उसी प्रकार लेखांकन व्यवसाय की वित्तीय स्थिति व अन्य सूचनाएं (जैसे – शुद्ध लाभ, सम्पत्ति व दायित्व, आदि) उन सभी पक्षकारों को प्रदान करता है जिनके लिए ये आवश्यक हैं।
  10. वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना – विभिन्न कानूनों/विधानों जैसे-कम्पनी अधिनियम आयकर अधिनियम, बिक्री कर अधिनियम आदि द्वारा विभिन्न प्रकार के विवरणों को जमा करने पर बल दिया जाता है।जैसे-वार्षिक खाते. आयकर रिटर्न, बिक्रीकर रिटर्न आदि।ये तभी जमा किये जा सकते हैं यदि लेखांकन ठीक से रखा जाये।
  11. व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना – लेखांकन का एक महत्वपूर्ण कार्य व्यवसाय की सम्पत्तियों की रक्षा करना है।यह तभी सम्भव है जबकि विभिन्न सम्पत्तियों का उचित लेखा रखा जाये।
  12. निर्णय लेने में सहायता करना – लेखांकन महत्वपूर्ण आकड़े उपलब्ध कराता है जिससे निर्णयन कार्य में सुविधा होती है।
  13. उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त लेखांकन प्रबन्धक को संस्था के नियन्त्रण कार्य में पर्याप्त सहायता प्रदान करता है।यह सहायता विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को उपलब्ध कराकर ही की जाती है।

जैसे :

  1. हस्तस्य रोकड़ कितनी है?
  2. बैंक शेष की स्थिति क्या है?
  3. सामग्रियों या स्टॉक (Inventories) की स्थिति क्या है?
  4. ग्राहकों के पास कितना बकाया है?
  5. लेनदारों को कितना देना है?
  6. विभिन्न सम्पत्तियों की स्थिति क्या है और उनका उपयोग किस प्रकार हो रहा है?

इन सूचनाओं के आधार पर ही संस्था के स्वामी या प्रबन्धक यह देखते हैं कि किसी सम्पति की बर्बादों तो नहीं हो रही है।

लेखांकन के प्रकार या शाखाएँ

विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अलग-अलग प्रकार की लेखांकन पद्धतियाँ विकसित हुई हैं।इन्हें लेखांकन के प्रकार या लेखांकन की शाखाएँ कहा जाता है।

लेखांकन की मुख्य शाखाएँ निम्नलिखित हैं :

  1. वित्तीय लेखांकन
  2. लागत लेखांकन
  3. प्रबन्ध लेखांकन
  4. वित्तीय लेखांकन – वित्तीय लेखांकन वह लेखांकन है जिसके अन्तर्गत वित्तीय प्रकृति वाले सौदों को लेखाबद्ध किया जाता है।इन्हें सामान्य लेखाकर्म भी कहते हैं और इन लेखों के आधार पर लाभ-हानि या आय विवरण तथा चिट्ठा (तुलन-पत्र) तैयार किया जाता है।
  5. इस प्रकार वित्तीय लेखांकन के निम्नलिखित मुख्य कार्य हैं :
  6. व्यवसाय या संस्था से सम्बन्धित लेन-देनों को उपयुक्त बही में लिखना
  7. आवश्यक खाते, लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा तैयार करना
  8. एक निश्चित अवधि के व्यावसायिक परिणामों से व्यवसाय के स्वामी या सम्बन्धित पक्षकारों को अवगत कराना।
लेखांकन-एक परिचय
  • लागत लेखांकन – लागत लेखांकन वित्तीय लेखा पद्धति की सहायक (Subsidiary) है।लागत लेखांकन किसी वस्तु या सेवा की लागत का व्यवस्थित व वैज्ञानिक विधि से लेखा करने की प्रणाली है।इसके द्वारा वस्तु या सेवा की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का सही अनुमान लगाया जा सकता है।इसके द्वारा लागत पर नियन्त्रण भी किया जाता है।लागत लेखांकन के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य या आदेश, ठेका, विधि, सेवा या इकाई की लागत

का निर्धारण सम्मिलित रहता है।यह उत्पादन, विक्रय एवं वितरण की लागत भी बताता है।

लेखांकन-एक परिचय
  • प्रबन्ध लेखांकन – यह लेखांकन की आधुनिक कड़ी है।जब कोई लेखाविधि प्रबन्ध की आवश्यकताओं के लिए आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करती है, तब इसे प्रबन्थकीय लेखाविधि कहा जाता है।
लेखांकन-एक परिचय

लेखांकन की सीमाएँ

सिद्धान्तों के एक पूर्ण संग्रह का अभाव

भूतकालीन शल्य परीक्षण

  1. सिद्धान्तों पर एकमत का अभाव
  2. सिद्धान्तों के प्रतिपालन में अन्तर
  3. सिर्फ मौद्रिक तथ्यों का लेखा
  4. सीमित अवधि का चित्र प्रस्तुत करना
  5. व्याख्यात्मक विवरण का अभाव
  6. वास्तविक मूल्य न बता पाना

सिद्धान्तों के एक पूर्ण संग्रह का अभाव –

लेखांकन के सिद्धान्तों को एक सबसे बड़ी कमी यह है कि इसके सिद्धान्तों का कोई एक पूर्ण संग्रह या सूची उपलब्ध नहीं है।

भूतकालीन शल्य परीक्षण –

वित्तीय लेखांकन भूतकालीन शल्य परीक्षण (Post-mortem) विश्लेषण प्रस्तुत करता है (अर्थात् भूतकालीन समस्याओं हेतु है)।यह भविष्य की योजनाओं की उपेक्षा करता है।

सिद्धान्तों पर एकमत का अभाव –

लेखांकन के जो भी सिद्धान्त हैं, उनमें से बहुत-से सिद्धान्तों पर सभी लेखापाल एकमत नहीं रखते।लेखांकन के सिद्धान्त ‘सामान्यतया स्वीकृत सिद्धान्त’ होते हैं।

सिद्धान्तों के प्रतिपालन में अन्तर –

लेखांकन के सिद्धान्तों के प्रतिपालन में भी बहुत-सी भिन्नंताएँ रहती हैं।उसके फलस्वरूप परिणामों में भिन्नता रहती है और तुलना में कठिनाई होती है।

सिर्फ मौद्रिक तथ्यों का लेखा –

लेखांकन में केवल उन्हीं घटनाओं और तथ्यों का लेखा किया जाता है जिन्हें मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।अत: कोई भी घटना व्यवसाय के लिए कितनी ही महत्वपूर्ण क्यों न हो, उसका लेखा पुस्तकों में तब तक सम्भव नहीं है जब तक उसका मौद्रिक मापन नहीं किया जाता है।

सीमित अवधि का चित्र प्रस्तुत करना –

(वित्तीय) लेखांकन एक सीमित अवधि का ही चित्र प्रस्तुत करता है. जैसे – निश्चित अवधि के लिए लाभ-हानि खाता अथवा निश्चित तिथि का चिट्ठा।

व्याख्यात्मक विवरण का अभाव –

लेखांकन में व्याख्यात्मक विवरण (Analytical Details) का भी अभाव रहता है जिससे उपक्रम की बढ़ी हुई लाभात्मकता निश्चित करना कठिन होता है।

वास्तविक मूल्य न बता पाना –

लेखांकन में सम्पत्तियों का अभिलेखन इसके लागत मूल्य पर किया जाता है।अत: यह व्यवसाय के शुद्ध मान को प्रस्तुत नहीं करता अर्थात् वास्तविक मूल्य नहीं बताता है।

अकाउंटिंग (Accounting) या बुक कीपिंग व्यावसायिक भाषाएं हैं।हम इस भाषा का उपयोग वित्तीय लेनदेन और मालिक को उनके परिणामों को संप्रेषित करने के लिए कर सकते हैं।लेखांकन कंपनी के मालिक या शेयरधारक को वित्तीय जानकारी एकत्र करने, विश्लेषण और संचार करने के लिए एक व्यापक प्रणाली है।

एक लेखाकार वह व्यक्ति होता है जो इन सभी प्रकार के व्यापारिक लेनदेन को लेखांकन प्रणाली में मालिक द्वारा लिए गए निर्णय के परिणाम को मापने के लिए रिकॉर्ड करता है, इसे लेखांकन कहा जाता है।

लेखांकन में तीन प्रकार की शाखाएँ हैं जैसा कि आरेख में दिखाया गया है और लिंक नीचे दिए गए हैं: –

लेखांकन-एक परिचय

1. Financial Accounting or book keeping (वित्तीय लेखा या बहीखाता): –

वित्तीय लेखांकन का अर्थ है मूल लेखांकन या प्रारंभिक स्तर का लेखांकन जिसमें हम किसी विशेष व्यवसाय के दिन-प्रतिदिन के लेनदेन को रिकॉर्ड, सारांशित और विश्लेषण कर रहे हैं।और अंत में, हम किसी विशेष वित्तीय वर्ष में व्यवसाय की वित्तीय स्थिति या लाभ / हानि और बैलेंस शीट तैयार करके किसी संगठन की स्थिति के बारे में जान पाएंगे।

2. Cost Accounting (लागत लेखांकन): –

यह कार्रवाई के विभिन्न वैकल्पिक पाठ्यक्रमों की रिकॉर्डिंग और वर्गीकरण, विश्लेषण, सारांश, आवंटन और मूल्यांकन और लागतों के नियंत्रण की एक प्रक्रिया है।इसका लक्ष्य लागत दक्षता और क्षमता के आधार पर प्रबंधन को सबसे उपयुक्त पाठ्यक्रम पर सलाह देना है।लागत लेखांकन का उपयोग घर में निर्मित उत्पाद की लागत को अंतिम रूप देने के लिए किया जाता है।

3. Management Accounting (प्रबंधन लेखांकन): –

प्रबंधन लेखांकन या प्रबंधकीय लेखांकन में, प्रबंधक अपने संगठन के मामलों को तय करने से पहले स्वयं को बेहतर ढंग से सूचित करने के लिए लेखांकन जानकारी के प्रावधानों का उपयोग करते हैं, जो उनके प्रबंधन और नियंत्रण कार्यों के प्रदर्शन को प्रभावित करता है।व्यवसाय के भविष्य से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय लेने में प्रबंधन की सहायता से।जैसा कि निम्नलिखित के रूप में दिखाया गया है:

  • पूंजी बजट
  • पूंजी संरचना
  • कार्यशील पूंजी की आवश्यकताएं
  • अनुपात विश्लेषण
  • योजना और संगठन
  • वित्तीय आंकड़ों का विश्लेषण
  • विभिन्न विभागों के लिए लक्ष्य तैयार करें।
  • और सभी निर्णय लें जो संगठन के विकास में मदद करता है।

Certificate in Microsoft Word
Certificate in Microsoft Excel
Certificate in Microsoft PowerPoint
Certificate in Microsoft Access
Certificate in Microsoft Office
Certificate in Web Designing
Certificate in Photoshop
Certificate in English Spoken
Certificate in HTML
Certificate in Tally
Certificate in Hindi Typing
Certificate in English Typing
Certificate in Desktop Publishing (DTP)
Diploma in Tally ERP 9 With GST
Diploma in Computer Application (DCA)
Advanced Diploma in Computer Applications (ADCA)
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